गौतम बुद्ध का जीवन परिचय, जन्म, परिवार, शिक्षा, त्याग, ज्ञान की खोज, मृत्यु (Gautama Buddha Biography in Hindi, birth, family, education, renunciation, search for knowledge, death)
महात्मा बुद्ध, जिन्हें गौतम बुद्ध या सिद्धार्थ गौतम भी कहा जाता है, एक सम्मानित आध्यात्मिक गुरु और बौद्ध धर्म के संस्थापक हैं। उनकी शिक्षाएं दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। यह लेख महात्मा बुद्ध की जीवनी प्रस्तुत करता है, जहां उनके जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं और प्रबुद्धता की प्राप्ति के पथ को हाइलाइट किया गया है।
Table of Contents
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय (Gautama Buddha Biography)
नाम | गौतम बुद्ध |
उपनाम | सिद्धार्थ गौतम, शाक्यामुनि, बुद्धा |
जन्म | 563 ई० |
जन्म स्थान | लुंबिनी, नेपाल |
मृत्यु | 483 ई० |
मृत्यु स्थान | कुशीनगर, भारत |
उम्र | 80 वर्ष (मृत्यु के समय) |
धर्म | बुद्ध |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
गौतम बुद्ध का परिवार (Gautama Buddha Family)
पिता का नाम | शुद्धोधन |
माता का नाम | मायादेवी, महाप्रजावती गौतमी (सौतेली माँ) |
भाई का नाम | नंदा |
पत्नी का नाम | यशोधरा |
बेटा का नाम | राहुल |
गौतम बुद्ध का जन्म (Birth of Gautam Buddha)
महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में शाक्य राज्य के लुंबिनी शहर (वर्तमान समय नेपाल) में हुआ था। उनके पिता शुद्धोधन, एक राजा थे जिनका शासन वर्तमान नेपाल तथा उत्तरी भारत के कुछ क्षेत्रों पर था। उनकी माता मायावती, एक महारानी थी। महात्मा बुद्ध का जन्म का नाम सिद्धार्थ गौतम रखा गया था।
उनका पालन पोषण कपिलवस्तु नामक प्राचीन शहर में हुआ। संभवतया यह शहर वर्तमान समय में उत्तरप्रदेश का पिपरहवा गांव ही था। कपिलवस्तु तथा लुंबिनी के बीच मात्र 24 किलोमीटर की दूरी थी।
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सतधारा के अनुसार जब सिद्धार्थ की माता मायावती गर्भवती थी तो उन्होंने बच्चे को जन्म देने के लिए कपिलवस्तु को छोड़कर अपने पति के शासन यहां जाना चाहा तुरंत में उन्होंने लूंगी शहर के एक बगीचे में पूर्णिमा की रात को एक बच्चे को जन्म दिया। हर वर्ष की उस पूर्णिमा को, बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
गौतम बुद्ध की शिक्षा (Gautama Buddha Education)
महात्मा बुद्ध ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुरु विश्वामित्र से प्राप्त की उन्होंने अपने गुरु विश्वामित्र से वेद एवं उपनिषद् की शिक्षा प्राप्त की वेद और उपनिषद के साथ ही उन्होंने युद्ध विद्या और राजकाज की भी शिक्षा ग्रहण की उन्होंने घुड़दौड़ तलवारबाजी, कुश्ती, तीर – कमान, घुड़दौड़ और रथ हॉकने में कोई भी उनका मुकाबला नहीं कर पाता था।
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गौतम बुद्ध का महल छोड़ना (Leaving the Palace of Gautama Buddha)
राजकुमार सिद्धार्थ गौतम का विवाह हो चुका था और उनका एक पुत्र भी था जिसका नाम राहुल था। एक दिन उनके मन में विचार आया कि जीवन हमेशा वृद्धता व मृत्यु की तरफ अग्रसर होता है तथा इंसान सांसारिक चीजों के पीछे भागता हुआ मौत के पास ही जाता है। वह अपनी जिंदगी में मुक्त नहीं हो पाता।
इसी विचार से प्रभावित होकर उन्होंने महल को छोड़कर वनों में जाने का निर्णय किया ताकि वे इस सांसारिक मोह माया से निकलकर ज्ञान प्राप्त कर सकें।
वनों में जाकर उन्होंने साधु का भेष बना लिया और अपने बाल कटवा लिए। जब वह महल छोड़कर जा रहे थे तब उनके माता-पिता ने उन्हें बहुत समझाया परंतु वे रुके नहीं। बेटे को जाते देख उनकी आंखें आंसुओं से भर आई।
सिद्धार्थ (Gautama Buddha) के जाने से पहले उसके पिता उसे राज्य के कई क्षेत्रों में घूमने के लिए लेकर गए थे।
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ब्राह्मणों के द्वारा की गई भविष्यवाणी में दो विकल्प दिए गए थे कि या तो सिद्धार्थ एक राजा बनेगा या फिर एक महान धार्मिक नेता। उसके पिता चाहते थे कि सिद्धार्थ एक राजा बने।
इसलिए वह सिद्धार्थ को राज्य की यात्रा पर ले कर गए। भ्रमण के वक्त सिद्धार्थ ने एक वृद्ध व्यक्ति को देखा। तो सारथी ने बताया कि सभी मनुष्यों को वृद्ध होना है और यही जीवन की सत्यता है।
सिद्धार्थ इस बात से गहनता से जुड़ गए। इसके बाद उन्होंने कई यात्राएं की जहां पर उन्होंने एक बीमार व्यक्ति और एक सन्यासी व्यक्ति को देखा। सन्यासी के जीवन से प्रभावित हुए। वापस महल में आने के बाद उन्होंने महल छोड़कर सन्यासी बनने का निर्णय लिया था।
ज्ञान की खोज:
एक घुमंतू तपस्वी की आड़ में, सिद्धार्थ गौतम ने प्रसिद्ध आध्यात्मिक शिक्षकों के मार्गदर्शन की मांग की और ध्यान और आत्म-अनुशासन के कठोर अभ्यासों में लगे रहे। हालाँकि, उन्होंने महसूस किया कि इन विधियों ने उन्हें वह अंतिम सत्य नहीं दिया जिसकी उन्होंने तलाश की थी।
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मध्य मार्ग:
। अत्यधिक तपस्या से मोहभंग होने पर, गौतम बुद्ध ने मध्यम मार्ग के रूप में जाना जाने वाला एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने यह स्वीकार करते हुए कि इन साधनों के माध्यम से सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है, आत्म-भोग और आत्म-वैराग्य के चरम को त्याग दिया। इसके बजाय, उन्होंने आध्यात्मिक जागृति के प्रमुख स्तंभों के रूप में ध्यान, नैतिक आचरण और ध्यान पर ध्यान केंद्रित करते हुए संयम के मार्ग की वकालत की।
ज्ञान प्राप्त करना:
वर्षों के अभ्यास और आत्मनिरीक्षण के बाद, गौतम बुद्ध ने 35 वर्ष की आयु में, भारत के बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए ज्ञान प्राप्त किया। इस गहन क्षण के दौरान उन्होंने दुख की प्रकृति, उसके कारणों और मुक्ति के मार्ग के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त की।
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शिक्षण और ज्ञान का प्रसार:
अपने ज्ञानोदय के बाद, गौतम बुद्ध ने अपना शेष जीवन अपनी शिक्षाओं को फैलाने में बिताया, जिसे धर्म के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कई प्रवचन दिए, जिन्हें सूत्र के रूप में जाना जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यक्ति शामिल हैं, जिनमें आम लोग, तपस्वी और राजा शामिल हैं। उनकी शिक्षाओं में चार आर्य सत्य, आर्य आष्टांगिक मार्ग, और करुणा, ध्यान और ज्ञान के सिद्धांत शामिल हैं।
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गौतम बुद्ध का मृत्यु (Death of Gautama Buddha)
महात्मा बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व 80 वर्ष की आयु में अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया, और परमात्मा में विलीन हो गए। ज्ञान प्राप्ति के बाद का संपूर्ण जीवन इन्होंने मानव कल्याण के लिए लगाया। यह ज्ञान को केवल अपने तक सीमित नहीं रखना चाहते थे, इसी कारण उन्होंने अनेकों उपदेश दिए तथा अपने ज्ञान को अमर कर दिया।
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