Sir Sankaran Nair Biography In Hindi भारत के उन गिने-चुने व्यक्तित्वों में से एक थे जिन्होंने अंग्रेजों की सत्ता के अंदर रहकर भी अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। इस लेख में हम जानेंगे उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ, देश के प्रति उनका योगदान, और क्यों उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।
चेट्टूर शंकरन नायर की जीवनी: स्वतंत्रता संग्राम में एक साहसी न्यायविद का योगदान

“जानिए चेट्टूर शंकरन नायर की जीवनी, उनका न्यायिक करियर, जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ विरोध, और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान।”
चेट्टूर शंकरन नायर का प्रारंभिक जीवन
चेट्टूर शंकरन नायर का जन्म 11 जुलाई 1857 को केरल के त्रिशूर जिले में हुआ था। वे एक प्रतिष्ठित नायर परिवार से ताल्लुक रखते थे। बचपन से ही पढ़ाई में होशियार शंकरन नायर ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की और फिर कानून की पढ़ाई की।
वकालत और न्यायिक करियर
शंकरन नायर ने मद्रास हाईकोर्ट से अपने करियर की शुरुआत की और 1897 में वे वहीं जज बने। 1902 में उन्हें भारत के वायसराय की कार्यकारी परिषद (Viceroy’s Executive Council) में शामिल किया गया — जो उस समय किसी भी भारतीय के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
स्वतंत्रता संग्राम में शंकरन नायर का योगदान
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद इस्तीफा
1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद, जब ब्रिटिश सरकार ने कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की, तब शंकरन नायर ने कार्यकारी परिषद से इस्तीफा दे दिया। यह एक बहुत ही साहसिक कदम था जिसने पूरे देश में विरोध की भावना को और बल दिया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ाव
- 1897 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
- उन्होंने कांग्रेस के माध्यम से भारतीयों के अधिकारों की मांग उठाई।
- वे संवैधानिक सुधारों और न्यायिक स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे।
लेखन और वैचारिक योगदान
शंकरन नायर ने एक चर्चित किताब लिखी – “Gandhi and Anarchy”, जिसमें उन्होंने गांधी जी के कुछ विचारों की आलोचना की, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को भी स्वीकारा।
वे एक स्वतंत्र विचारक थे जो किसी भी विचारधारा को अंधविश्वास के साथ नहीं मानते थे।
सम्मान और उपलब्धियाँ
- 1912 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें “Sir” की उपाधि से सम्मानित किया।
- वे कई शैक्षिक और न्यायिक संस्थाओं से जुड़े रहे।
- उनकी प्रेरणा से कई भारतीय युवाओं ने न्यायिक क्षेत्र में कदम रखा।
📝 चेट्टूर शंकरन नायर की प्रमुख उपलब्धियाँ (Key Achievements)
| वर्ष | उपलब्धि |
|---|---|
| 1897 | मद्रास हाईकोर्ट के जज नियुक्त |
| 1902 | वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य बने |
| 1912 | “Sir” की उपाधि प्राप्त |
| 1919 | जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में इस्तीफा |
| 1897 | कांग्रेस के अमरावती अधिवेशन के अध्यक्ष बने |
📚 महत्वपूर्ण पुस्तक
Gandhi and Anarchy
यह किताब शंकरन नायर द्वारा लिखी गई थी, जिसमें उन्होंने गांधीजी की नीतियों की आलोचना की, लेकिन साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन की ज़रूरत और महत्व को भी उजागर किया। यह किताब आज भी ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
💡 रोचक तथ्य (Interesting Facts)
- शंकरन नायर भारत के उन पहले भारतीयों में से थे जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने इतने ऊँचे पद पर नियुक्त किया।
- वे न्याय व्यवस्था में भारतीयों की भागीदारी के प्रबल समर्थक थे।
- उनका पोता वी. के. कृष्ण मेनन भी भारत के एक प्रसिद्ध राजनयिक और स्वतंत्रता सेनानी थे।
निष्कर्ष
चेट्टूर शंकरन नायर न सिर्फ़ एक न्यायविद थे, बल्कि एक सच्चे देशभक्त भी थे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्चाई और न्याय के लिए किसी भी पद या प्रतिष्ठा की परवाह किए बिना आवाज़ उठाना चाहिए।
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